दिल का दौरा (हृदयाघात) दुनिया भर में लाखों लोगों की जान ले लेता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, हर साल करीब 1.8 करोड़ मौतें हृदय रोगों से होती हैं। भारत में भी यह समस्या तेजी से बढ़ रही है, खासकर शहरी जीवनशैली के कारण। लेकिन अच्छी खबर यह है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) अब चिकित्सा क्षेत्र में क्रांति ला रहा है। AI आधारित CoDE-ACS परीक्षण दिल के दौरे का निदान इतनी तेजी और सटीकता से कर सकता है कि अनावश्यक अस्पताल भर्ती 30-50% तक कम हो सकती है। इस ब्लॉग में हम विस्तार से जानेंगे कि CoDE-ACS क्या है, यह कैसे काम करता है, और यह पारंपरिक तरीकों से क्यों बेहतर है।

CoDE-ACS क्या है? AI की एक नई क्रांति
CoDE-ACS का पूरा नाम Collaboration for the Diagnosis and Evaluation of Acute Coronary Syndrome है। यह एक मशीन लर्निंग आधारित क्लिनिकल डिसीजन सपोर्ट टूल है, जो हृदय विशेषज्ञों को दिल के दौरे (मायोकार्डियल इन्फार्क्शन या MI) का तेज निदान करने में मदद करता है। 2023 में एडिनबर्ग यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं द्वारा विकसित यह टूल, हाई-सेंसिटिविटी कार्डियक ट्रोपोनिन (hs-cTn) लेवल को क्लिनिकल डेटा के साथ मिलाकर काम करता है।
ट्रोपोनिन एक प्रोटीन है जो हृदय की मांसपेशियों से रिलीज होता है जब दिल को नुकसान पहुंचता है। पारंपरिक टेस्ट में ट्रोपोनिन के फिक्स्ड थ्रेशोल्ड का इस्तेमाल होता है, लेकिन CoDE-ACS इसे कंटीन्यूअस वैल्यू के रूप में यूज करता है। यह टूल 10,000 से ज्यादा मरीजों के डेटा पर ट्रेन किया गया है, जो इसे विश्वसनीय बनाता है। 2024 के एक अध्ययन में पाया गया कि यह टूल प्रेजेंटेशन पर ही 56% मरीजों को लो-रिस्क कैटेगरी में रख सकता है।
CoDE-ACS कैसे काम करता है? सरल स्टेप्स में समझें
CoDE-ACS का उपयोग करना बेहद आसान है। यहां स्टेप-बाय-स्टेप प्रक्रिया है:
- प्रेजेंटेशन पर डेटा कलेक्शन: मरीज के आने पर डॉक्टर उम्र, लिंग, छाती में दर्द, हृदय गति, ब्लड प्रेशर, किडनी फंक्शन, ECG रिजल्ट्स और hs-cTn लेवल नोट करते हैं।
- मशीन लर्निंग मॉडल: XGBoost एल्गोरिदम इन डेटा को प्रोसेस करता है और 0 से 100 तक का प्रोबेबिलिटी स्कोर देता है।
- <3 स्कोर: लो प्रोबेबिलिटी (रूल आउट) – 99.7% नेगेटिव प्रेडिक्टिव वैल्यू (NPV)।
- >60 स्कोर: हाई प्रोबेबिलिटी (रूल इन) – 64-72% पॉजिटिव प्रेडिक्टिव वैल्यू (PPV)।
- सीरियल टेस्टिंग: अगर जरूरी हो, तो 1-2 घंटे बाद दूसरा ट्रोपोनिन टेस्ट किया जा सकता है। यह फ्लेक्सिबल टाइमिंग की सुविधा देता है, जो पारंपरिक 0/1-घंटे प्रोटोकॉल से अलग है।
यह टूल ऑनलाइन उपलब्ध है (https://decision-support.shinyapps.io/code-acs/), जहां डॉक्टर आसानी से स्कोर कैलकुलेट कर सकते हैं। 2025 के एक रिव्यू में बताया गया कि CoDE-ACS महिलाओं, बुजुर्गों और किडनी रोगियों जैसे सबग्रुप्स में भी लगातार परफॉर्म करता है।
पैरामीटर | CoDE-ACS परफॉर्मेंस | पारंपरिक ESC 0/1h एल्गोरिदम |
---|---|---|
लो-रिस्क मरीज (%) | 56-68% | 25-35% |
NPV (%) | 99.7% | 99.6% |
PPV (%) | 64-72% | 50-67% |
AUROC | 0.95-0.97 | 0.92-0.95 |
पारंपरिक तरीकों से CoDE-ACS क्यों बेहतर है?
पारंपरिक हृदयाघात निदान ESC या AHA गाइडलाइंस पर आधारित होता है, जो फिक्स्ड ट्रोपोनिन थ्रेशोल्ड और स्ट्रिक्ट टाइमिंग पर निर्भर करता है। इससे कई समस्या आती हैं:
- फॉल्स पॉजिटिव: 20-30% मरीज अनावश्यक रूप से भर्ती हो जाते हैं।
- सबग्रुप हेटेरोजेनिटी: महिलाओं या डायबिटीज वाले मरीजों में एक्यूरेसी कम।
- टाइम कंस्ट्रेंट: ठीक 1 घंटे बाद टेस्ट न हो पाए तो डिले।
CoDE-ACS इन कमियों को दूर करता है। यह कंटीन्यूअस डेटा और पर्सनलाइज्ड स्कोरिंग से 61% मरीजों को प्रेजेंटेशन पर ही रूल आउट कर सकता है, जबकि ESC में सिर्फ 25-35%। PPV भी 80% तक पहुंच जाता है। एक इंटरनेशनल वैलिडेशन स्टडी में 10,000+ मरीजों पर टेस्ट करने पर यह ट्रेडिशनल पाथवेज से बेहतर साबित हुआ। इससे इमरजेंसी डिपार्टमेंट का बोझ कम होता है और मरीजों को जल्दी डिस्चार्ज मिलता है।
CoDE-ACS के फायदे: मरीज और डॉक्टर दोनों के लिए
- तेज निदान: प्रेजेंटेशन पर ही 97% सेंसिटिविटी, जिससे गोल्डन ऑवर में ट्रीटमेंट शुरू हो सकता है।
- कम अस्पताल भर्ती: लो-रिस्क मरीजों को घर भेजा जा सकता है, NHS जैसे सिस्टम में 30% एडमिशन कम।
- सटीकता: सबग्रुप्स (जैसे महिलाएं, जहां ट्रोपोनिन लेवल कम होता है) में भी 99% NPV।
- कॉस्ट-इफेक्टिव: अनावश्यक टेस्ट और स्टे कम से हेल्थकेयर कॉस्ट बचत।
- आउटकम इम्प्रूवमेंट: 30-दिन मॉर्टेलिटी रिस्क कम।
भारत जैसे देशों में, जहां हृदय रोग तेजी से बढ़ रहे हैं, CoDE-ACS जैसे टूल AI हेल्थकेयर को सुलभ बना सकते हैं।
भविष्य की संभावनाएं: AI और CoDE-ACS का रोल
2025 तक AI ACS डायग्नोसिस में और आगे बढ़ चुका है। CoDE-ACS को वियरेबल डिवाइसेस (जैसे स्मार्टवॉच) से इंटीग्रेट करने की प्लानिंग है, जो रीयल-टाइम मॉनिटरिंग देगा। फ्यूचर रिसर्च में जेनेटिक डेटा और माइक्रो-RNA को शामिल किया जाएगा, जिससे AUROC 0.99 तक पहुंच सकता है। हालांकि, चुनौतियां जैसे डाइवर्स पॉपुलेशन वैलिडेशन और एथिकल गाइडलाइंस बाकी हैं।
दिल के दौरे से लड़ने का नया हथियार
AI आधारित CoDE-ACS परीक्षण न सिर्फ दिल के दौरे का तेज और सटीक निदान कर रहा है, बल्कि हेल्थकेयर सिस्टम को भी मजबूत बना रहा है। अगर आप छाती में दर्द महसूस करें, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें। भविष्य में ऐसे टूल हर अस्पताल में स्टैंडर्ड हो जाएंगे। क्या आपका विचार है? कमेंट में शेयर करें!
0 टिप्पणियाँ